“दिल्ली-एनसीआर में ट्रैफिक और स्थानीय उत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ा”

“CSE रिपोर्ट: ट्रैफिक और स्थानीय स्रोतों ने दिल्ली की हवा जहरीली बनाई”

नई दिल्ली: इस बार पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले कई सालों के सबसे निचले स्तर पर रही, फिर भी राजधानी दिल्ली और एनसीआर की हवा बेहद जहरीली बनी हुई है। अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली में ज्यादातर दिन AQI ‘बेहद खराब’ से लेकर ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किए गए। यह जानकारी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण वाहन और स्थानीय उत्सर्जन हैं, जबकि पराली के धुएं का योगदान ज्यादातर दिनों में केवल 5% से कम रहा। 12 और 13 नवंबर को यह योगदान अधिकतम 22% तक पहुंचा।

CSE की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली के 22 निगरानी स्टेशनों में से अधिकांश में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का स्तर तय सीमा से ऊपर रहा। द्वारका सेक्टर-8 में 55 दिन, जबकि जहांगीरपुरी और दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस में 50 दिन CO का स्तर तय मानकों से अधिक रहा। PM2.5 की वार्षिक औसत मात्रा जहांगीरपुरी में 119 µg/m³, बवाना-वजीरपुर में 113 µg/m³ और आनंद विहार में 111 µg/m³ दर्ज की गई। इसके अलावा, विवेक विहार, अलीपुर, नेहरू नगर, सिरी फोर्ट और पटपड़गंज भी प्रदूषण के हॉटस्पॉट के रूप में उभरे।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि सुबह 7-10 बजे और शाम 6-9 बजे ट्रैफिक पीक के समय हवा में PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) की मात्रा एक साथ बढ़ती है। CSE की रिसर्चर अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है,
“सर्दियों में हवा नीचे बैठी रहती है, जिससे वाहनों का धुआं फंस जाता है। यह रोज़ाना एक जहरीला कॉकटेल बन रहा है।”

CSE ने दिल्ली में प्रदूषण घटाने के लिए कई उपाय सुझाए हैं। इसमें पुरानी डीजल और पेट्रोल गाड़ियों को स्क्रैप करना, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, साइकिल और वॉकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना, पार्किंग कैप और कंजेशन टैक्स लागू करना, खुले में कचरा जलाने पर रोक, घरों में साफ ईंधन की उपलब्धता और फसल अवशेष मिट्टी में मिलाना शामिल हैं। इसके अलावा बायो-मेथनेशन और एथेनॉल-गैस उत्पादन को बढ़ावा देना भी रिपोर्ट में सुझाया गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 2018-2020 के बाद प्रदूषण में गिरावट रुक गई है। 2024 में दिल्ली में PM2.5 की औसत वार्षिक मात्रा फिर बढ़कर 104.7 µg/m³ हो गई है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अगर तत्काल सुधार के लिए कदम नहीं उठाए गए तो वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

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