क्या विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार नक्सल समर्थक है? सलाव जुडूम क्या है? जानिए


उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले सलवा जुडूम पर गरमाई सियासत, रविशंकर प्रसाद और सुधर्शन रेड्डी आमने-सामने
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले सलवा जुडूम को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुधर्शन रेड्डी पर निशाना साधते हुए कहा कि,
“मैं भी देश का छोटा-मोटा वकील हूं और कानून मंत्री भी रहा हूं। कानून समझता हूं। हम निर्णय का विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन कानून के छात्र के रूप में इसमें जो टिप्पणियां की गई हैं वो ठीक नहीं हैं। सुधर्शन रेड्डी के निर्णय से माओवाद के खिलाफ लड़ाई को बड़ा धक्का लगा था। आज वही सुधर्शन रेड्डी विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार हैं।”

वहीं, बी. सुधर्शन रेड्डी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए सफाई दी। उन्होंने कहा,
“मैं नक्सल समर्थक बिल्कुल नहीं हूं और मेरी विचारधारा भारत का संविधान है। सलवा जुडूम का फैसला सुप्रीम कोर्ट का फैसला था और वह माओवादियों के पक्ष में नहीं था। अगर ऐसा था तो इस फैसले को अब तक चुनौती क्यों नहीं दी गई?”

क्या है सलवा जुडूम और सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ में 2005 में शुरू किया गया विवादित अभियान था, जिसमें आम नागरिकों—कई बार नाबालिगों—को हथियार देकर माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ खड़ा किया गया। मानवाधिकार संगठनों ने इसे कड़ी आलोचना का विषय बनाया।
साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया: सरकार नागरिकों को हथियार नहीं दे सकती, और निजी मिलिशिया बनाकर कानून को हाथ में नहीं ले सकती। अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार को यह अभियान बंद करने और हथियार वापस लेने का आदेश दिया। उस पीठ में जस्टिस बी. सुधर्शन रेड्डी भी शामिल थे।

उपराष्ट्रपति पद का चुनाव कब है?
इस बार का उपराष्ट्रपति चुनाव 9 सितंबर 2025 को होने वाला है। भारत निर्वाचन आयोग ने 7 अगस्त को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 21 अगस्त, जांच 22 अगस्त, नाम वापस लेने की अंतिम तारीख 25 अगस्त है। मतदान और मतगणना दोनों 9 सितंबर को ही होंगे।
जगदीप धनखड़ का एंगल
उपराष्ट्रपति का यह चुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को इस्तीफे की वजह बताया। धनखड़ का यह कदम राजनीतिक हलकों में बड़ी चर्चा का विषय बना क्योंकि उन्होंने अचानक इस्तीफा दिया और विपक्ष को एक मौका मिल गया कि वह इस पद के लिए मजबूत चेहरा मैदान में उतारे। धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच यह चुनाव सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा का मुद्दा बनने वाला है।