माखन चोर के संग उमंगों का पर्व – जन्माष्टमी का उल्लास


भक्ति, रंग और परंपराओं में डूबा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव
माखन चोर के संग उमंगों का पर्व – जन्माष्टमी का उल्लास
भक्ति, रंग और परंपराओं में डूबा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव
आज भाद्रपद मास की अष्टमी है और चारों तरफ़ सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा है – “जय कन्हैया लाल की!”
भगवान विष्णु के आठवें अवतार, नंद के लाल श्रीकृष्ण का जन्मदिन देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। मंदिरों से लेकर घर-आंगनों तक भक्ति का माहौल है।

मंदिरों में श्रद्धा की भीड़
आज सुबह से ही लोग मंदिरों में पहुँच रहे हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारका और ब्रज के हर कोने को दुल्हन की तरह सजाया गया है। रंग-बिरंगे फूल, झूलों पर विराजमान नन्हे-से कान्हा, घंटियों की मधुर ध्वनि और भजन-कीर्तन से पूरा वातावरण भगवान के रंग में रंगा है।
झांकियों का जादू और रासलीला
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर सिर्फ पूजा ही नहीं होती, बल्कि यह दिन हमारी कला और संस्कृति का भी उत्सव है। जगह-जगह रासलीलाओं का मंचन हो रहा है — कभी गोपियों संग माखन चुराते कन्हैया, तो कभी कालिया नाग पर नाचते मुरलीधर। बच्चे-बूढ़े सभी इन झांकियों को देख खुश हो जाते हैं।
दही हांडी का रोमांच
महाराष्ट्र में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का मतलब है — “गोविंदा आला रे!”
यहाँ युवा टोली बनाकर मानव पिरामिड खड़ी करते हैं और ऊँचाई पर लटकी मटकी को फोड़ते हैं। यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एकता, साहस और विश्वास का अद्भुत उदाहरण है।

आधी रात का पावन पल
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की सबसे बड़ी खुशी रात 12 बजे आती है, जब श्रीकृष्ण का जन्म माना जाता है। शंख, घंटे और जयकारों की आवाज़ से मंदिर गूंज उठते हैं। भक्त झूला झुलाते हैं और बाल गोपाल को माखन-मिश्री का भोग लगाकर उनका स्वागत करते हैं।
श्रीकृष्ण की सीख
श्रीकृष्ण सिर्फ भक्ति के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि कर्म और धर्म के भी मार्गदर्शक हैं। उनका कहना है — “कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।” यह आज भी उतना ही आवश्यक है।
जन्माष्टमी का असली मतलब है प्रेम, सहयोग और आनंद।
यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन में भक्ति और खुशी, दोनों का साथ होना चाहिए।
जय श्रीकृष्ण!