क्या नीतीश कुमार अधिकारियों के सहारे BJP के मंत्रियों का पंख कतर रहे हैं?

अधिकारियों के सहारे बढ़ी नीतीश की पकड़?

बिहार की राजनीति में एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार के अंदर चल रहे समीकरणों की चर्चा तेज हो गई है। बीजेपी नेताओं की यह शिकायत लंबे समय से रही है कि मुख्यमंत्री के सचिव कई मामलों में सीधे दखल देते हैं, जिससे मंत्रियों को अपने-अपने विभागों में निर्णय लेने में कठिनाई होती है।

यह विवाद हाल में तब और बढ़ गया जब प्रशासनिक फेरबदल के दौरान सीके अनिल को राजस्व विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया। राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर तुरंत यह कयास लगने लगे कि क्या यह फैसला मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के बीच बढ़ते तनाव का संकेत है, क्योंकि राजस्व विभाग का प्रभार सिन्हा के पास ही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के बीच खींचतान नई नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष रहते समय भी दोनों के बीच कई बार तीखी बहस देखने को मिली थी। डिप्टी सीएम बनने के बाद भी विजय कुमार सिन्हा के कुछ बयानों ने राजनीतिक हलचल बढ़ाई, जिससे माना गया कि यह मुख्यमंत्री को पसंद नहीं आया।

अब राजस्व विभाग में सीके अनिल की पोस्टिंग को इन राजनीतिक संकेतों से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि सरकार के अंदर चल रही शक्ति-संतुलन की खींचतान से भी जुड़ा हो सकता है।

बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक चर्चाओं में सबसे ज़्यादा जिस नाम को लेकर असमंजस बना हुआ था, वह था विजय कुमार सिन्हा। लगातार खबरें सामने आ रही थीं कि उन्हें इस बार उपमुख्यमंत्री का पद नहीं मिलेगा। राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया रिपोर्ट्स में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार की नई संरचना में उनकी भूमिका कमज़ोर हो सकती है और संभव है कि किसी नए चेहरे को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए।

इन अटकलों के बीच कई लोग यह मानने लगे थे कि विजय कुमार सिन्हा की राजनीतिक हैसियत पहले जैसी नहीं रही और नीतीश कुमार के साथ पहले हुई टकरावों का प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ सकता है। विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए उनकी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कई बार तीखी बहस हुई थी, जिसने बिहार की राजनीति में खूब सुर्खियाँ बटोरी थीं। उपमुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके बयान और सख़्त राजनीतिक रुख कई बार विवादों में रहे। इसी पृष्ठभूमि के चलते यह कयास और मजबूत हो गए कि उन्हें अगली सरकार में शायद बड़ी भूमिका न मिले।

लेकिन इन तमाम अनुमानों और चर्चाओं के उलट, सरकार के गठन के समय तस्वीर पूरी तरह बदल गई। विजय कुमार सिन्हा को न सिर्फ एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बनाया गया, बल्कि उन्हें सरकार के भीतर नंबर तीन की सबसे महत्वपूर्ण पोजीशन भी मिली। यह फैसला दिखाता है कि चुनाव के बाद भी उनकी राजनीतिक पकड़ और प्रशासनिक क्षमता को कम करके नहीं आँका जा सकता।

विजय कुमार सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं और पार्टी के भीतर भी उनके रिश्ते हमेशा सहज नहीं रहे। कई बार उनका टकराव अपने ही नेताओं से होता रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनके समकक्ष और बिहार सरकार में नंबर दो की स्थिति रखने वाले उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी हैं, जिनके साथ उनकी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और अंदरूनी खींचतान लंबे समय से चर्चा में रही है। यह जातीय समीकरण और नेतृत्व के बीच की दूरी, दोनों ही बातें उनकी राजनीति को जटिल लेकिन प्रभावशाली बनाती हैं।

चुनाव के बाद की तमाम अटकलों के बावजूद उपमुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी यह संदेश देती है कि बिहार की राजनीति में विजय कुमार सिन्हा अभी भी एक प्रभावशाली और निर्णायक चेहरा बने हुए हैं।

Share Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *