SIR प्रक्रिया पर देशभर में बढ़ा विवाद, ममता बनर्जी–अमित शाह आमने-सामने
मतदाता सूची पुनरीक्षण में देरी, तकनीकी दिक्कतों और राजनीतिक आरोपों से SIR पर नया विवाद खड़ा
देश के कई राज्यों में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया पर राजनीतिक तापमान लगातार बढ़ रहा है। मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करने के लिए शुरू की गई यह प्रक्रिया अब आरोप–प्रत्यारोप का केंद्र बन चुकी है। जिस पहल का मकसद चुनावी पारदर्शिता बढ़ाना था, वही अब कई दलों के निशाने पर है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने SIR पर सबसे कड़ा रुख दिखाते हुए इसे “अराजक, अस्पष्ट और खतरनाक” करार दिया। उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर कहा कि यह अभियान बिना तैयारी, बिना दिशानिर्देश और बिना तकनीकी सपोर्ट के अचानक लागू कर दिया गया। कई क्षेत्रों में BLOs को सही प्रशिक्षण नहीं मिला, और सर्वर बार-बार डाउन होने से ऑनलाइन एंट्री लगभग ठप पड़ गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस हालत में 4 दिसंबर तक डेटा अपलोड करने की डेडलाइन पूरी कर पाना संभव नहीं दिख रहा। ममता ने चेतावनी दी कि ऐसी गड़बड़ियों से पंजीकृत मतदाताओं की वैध प्रविष्टियों पर असर पड़ेगा और सूची की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होंगे।
उधर, ममता बनर्जी के बयान के अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कड़ा जवाब देते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक दल SIR प्रक्रिया में अनावश्यक अड़चनें डाल रहे हैं। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा, “घुसपैठ और फर्जी वोटिंग रोकना देश की सुरक्षा के लिए जरूरी है। चुनाव आयोग मतदाता सूची को साफ कर रहा है, लेकिन कुछ दल इस प्रक्रिया को विवादित बनाकर उन तत्वों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो लोकतंत्र को कमजोर करते हैं।” शाह ने साफ कहा कि सरकार किसी भी हालत में मतदाता सूची को सटीक और सुरक्षित बनाने की पहल से पीछे नहीं हटेगी।
हालात यह दर्शाते हैं कि SIR प्रक्रिया तकनीकी चुनौतियों, प्रशासनिक दबाव और राजनीतिक कथाओं के बीच फंस गई है। एक तरफ चुनाव आयोग इसे नियमित पुनरीक्षण का हिस्सा मानता है, जबकि कई राज्य सरकारें और राजनीतिक दल इसे समय, संसाधनों और प्रक्रिया के आधार पर अव्यवहारिक बता रहे हैं।
राज्यों की ओर से उठाए गए सवाल और केंद्र की ओर से दी जा रही कठोर प्रतिक्रियाएं दोनों मिलकर संकेत दे रही हैं कि आने वाले दिनों में SIR को लेकर बहस और भी तेज हो सकती है। चुनावी मौसम नजदीक है, ऐसे में मतदाता सूची से जुड़ा हर कदम देश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बनने वाला है।

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संजना झा पत्रकारिता के क्षेत्र में 8 वर्षों से अधिक का अनुभव रखती हैं। वर्तमान में वह हिंदी माइक में बतौर असिस्टेंट एडिटर कार्यरत हैं। उन्हें समसामयिक घटनाएँ, राजनीति एवं लाइफस्टाइल जैसे विषयों में गहरी समझ और लेखन का व्यापक अनुभव प्राप्त है। अपनी खोजपरक दृष्टि, तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विषयों की गहराई तक पहुंचने की शैली के लिए वह जानी जाती हैं।
ज्वाइनिंग डेट: 16 अगस्त 2025

