उस दिन जो हुआ मैं हैरान था – जूता फेंकने की कोशिश पर CJI गवई का बयान

CJI गवई ने जूता फेंकने की घटना को ‘भूला हुआ अध्याय’ बताया और कहा कि अब न्यायपालिका आगे बढ़ चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने अपने ऊपर जूता फेंके जाने की कोशिश की घटना को “एक भूला हुआ अध्याय” बताया है। उन्होंने कहा कि यह घटना उन्हें और उनके साथ बैठे जजों को स्तब्ध कर देने वाली थी, लेकिन अब उन्होंने इसे पीछे छोड़ दिया है। यह टिप्पणी सीजेआई ने गुरुवार को दी, जब सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने सुप्रीम कोर्ट में वनशक्ति फैसले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान इस घटना का जिक्र किया। शंकरनारायण ने कहा कि यह घटना लगभग 10 साल पुरानी है और उस समय बेंच ने दोषी पक्ष पर अवमानना की कार्रवाई की थी।

सीजेआई गवई ने कहा कि सोमवार (6 अक्टूबर) को जो हुआ, उससे वे स्तब्ध थे, लेकिन अब उनके लिए यह एक भूला हुआ अध्याय बन चुका है। उन्होंने आगे कहा कि अदालत ने संयम और उदारता दिखाते हुए मामले को संभाला और अब वे आगे बढ़ चुके हैं। हालांकि बेंच के अन्य जज उज्जल भुईंया ने इस घटना को सुप्रीम कोर्ट का अपमान बताया और कहा कि यह कोई मजाक की बात नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह पूरी न्यायपालिका पर आघात है और किसी को भी इस प्रकार की हरकत के लिए माफी नहीं दी जानी चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस घटना को अक्षम्य अपराध करार दिया, लेकिन कोर्ट द्वारा दिखाए गए संयम और उदारता की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह उदाहरण प्रेरक है और न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने का संदेश देता है। घटना के समय वकील राकेश किशोर ने खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फीट ऊंची खंडित मूर्ति की पुनर्स्थापना याचिका पर सीजेआई गवई की टिप्पणी से नाराज होकर जूता फेंकने की कोशिश की थी। सीजेआई ने उस मामले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र का बताते हुए कहा कि भक्त को भगवान से ही प्रार्थना करनी चाहिए।

इस घटना ने पूरे न्यायिक समुदाय और देश में बहस पैदा कर दी थी। सीजेआई ने स्पष्ट किया कि अब वह इस घटना को पीछे छोड़ चुके हैं और इसे भुला बिसरा इतिहास मानते हैं। वहीं न्यायिक संस्थानों की सुरक्षा और सम्मान पर सवाल उठाने वाले इस मामले ने देशभर में चर्चा का विषय बन गया।

मुख्य बिंदु: CJI गवई ने इसे ‘भूला हुआ अध्याय’ कहा, जस्टिस भुईंया ने इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान बताया, सॉलिसिटर जनरल ने इसे अक्षम्य अपराध बताया, और राकेश किशोर ने 6 अक्टूबर को यह हरकत की।

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