शरद यादव के बेटे को टिकट न मिलने पर RJD नेता ने फेसबुक पर जताई नाराजगी।
शरद यादव के बेटे को टिकट न मिलने पर भड़के शिवानंद तिवारी, फेसबुक पोस्ट में जताई नाराजगी
बिहार में चुनाव की सरगर्मी तेज है, सबके अपने-अपने दावे और वादे है.. कुछ लोग टिकट कटने से नाराज है तो कुछ लोग चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं…लेकिन इस बीच आरजेडी के एक और नेता नाराज नजर आ रहे है… दअसल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने मधेपुरा से शरद यादव के बेटे शांतनु को राजद से टिकट ना मिलने पर नाराजगी व्यक्त की. क्योंकि RJD ने सिटिंग विधायक को ही अपना यहां पर उम्मीदवार बनाया है!RJD के नेता ने ये नाराजगी अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए जाहिर की है..
दरअसल शिवानंद तिवारी ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि,
“शरद जी से पहली मर्तबा मैं 1969 में मिला था. उस साल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन जबलपुर में ही हुआ था. उसी साल पुरी के शंकराचार्य के विरुध्द छुआ-छूत विरोधी क़ानून के तहत मैंने पटना केस किया था. उस मुकदमे की वजह से मेरा नाम ख़बरों में सुर्खियों में था. पार्टी ने उक्त राष्ट्रीय सम्मेलन में मुझे डेलिगेट बना दिया था.”
वो यहीं नहीं रुके आगे कहा है कि..
उसके एक या दो दिन पहले उस मुकदमे की तारीख थी. मेरे वकील ने जबलपुर सम्मेलन जाने का हवाला देते हुए उसकी तारीख आगे बढ़वा दी थी. देश भर में वह मुकदमा चर्चा का विषय हो गया था. मुकदमे की प्रत्येक गतिविधि की खबर अख़बारों में छपती थी. जब मैं पार्टी के सम्मेलन में शामिल होने के लिये जबलपुर पहुँचा तो मुझे याद है कि वहाँ के किसी एक अख़बार ने शीर्षक लगाया था ‘शिवानन्द तिवारी जबलपुर में.’
आरजेडी नेता ने आगे कहा …
शरद जी वहाँ के स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष थे. उस सम्मेलन में वे भी वालंटियर थे. पता लगाते हुए वे मेरे कमरे में पहुँचे. अपने कॉलेज के गेट पर मेरी सभा कराने के लिए उन्होंने मुझे आमंत्रण दिया. लेकिन मैं गया नहीं. शरद जी से वह मेरी पहली मुलाक़ात थी. उसके बाद तो गंगा से बहुत पानी बह गया. समाजवादी राजनीति में वे बड़े नेता के तौर पर उभरे. जबलपुर और बदायूं में चुनाव हारने के बाद वे बिहार आए. बिहार से सांसद बनने के पहले से ही वे यहां की राजनीति से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे. मैंने बहुत क़रीब से देखा है. कर्पूरी जी और तिवारी जी की पीढ़ी के बाद जो दो नेता उस धारा में उभरे इन दोनों की राजनीति में शरद जी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही. विशेष रूप से लालू जी की राजनीति में. अपने अंतिम दिनों में शरद जी एक तरह से राजनीति के बियाबान में चले गए थे. अंतिम दिनों में उन्होंने लालू जी की पार्टी से अपने को जोड़ लिया था.
‘लोकसभा में भी नहीं मिला अवसर’
मधेपुरा को शरद जी ने अपना घर बना लिया था.ज़मीन लेकर अच्छा ख़ासा वहाँ उन्होंने घर बना लिया है. शरद जी की दो संतान हैं. एक बेटी और एक बेटा. परिवार के लोग और विशेष रूप से उनकी पत्नी रेखा जी की इच्छा थी की शरद के स्थान पर उनके बेटे शांतनु को लोकसभा का चुनाव लड़वा दिया जाये. लेकिन वह अवसर उसे नहीं मिला. नीतीश जी की पार्टी के दिनेश जी वहां से सांसद हैं. मज़बूत आदमी हैं. लालू जी की पार्टी ने शांतनु को नहीं लड़ा कर किसी अन्य को लड़ाया. लेकिन वो भी जीत नहीं पाए. अगर शरद जी का बेटा भी वहां से उम्मीदवार बनाया गया होता तो वह भी नहीं जीत पाता. लेकिन लालू जी शरद जी के ऋण से मुक्त हो जाते. आज रेखा जी को फोन किया. बहुत उदास और दुखी थीं.

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संजना झा पत्रकारिता के क्षेत्र में 8 वर्षों से अधिक का अनुभव रखती हैं। वर्तमान में वह हिंदी माइक में बतौर असिस्टेंट एडिटर कार्यरत हैं। उन्हें समसामयिक घटनाएँ, राजनीति एवं लाइफस्टाइल जैसे विषयों में गहरी समझ और लेखन का व्यापक अनुभव प्राप्त है। अपनी खोजपरक दृष्टि, तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विषयों की गहराई तक पहुंचने की शैली के लिए वह जानी जाती हैं।
ज्वाइनिंग डेट: 16 अगस्त 2025

